शुक्रवार, 12 अक्टूबर 2018

गुलामी की जंजीरें तो टूटीं पर आपसी फूट ने बना लिया गुलाम


भारत सर्वधर्म और भिन्न भिन्न वर्गीय व भाषायी लोगों का देश है। जिसे अंग्रेजी हुकूमत से आजाद कराने के लिए हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई सभी धर्म के लोगों ने अपना बलिदान दिया। देश के महापुरूषों जैसे महात्मा गांधी, बाबा साहेब डा. भीमराव अंडेबकर, पंडित जवाहर लाल नेहरू, शहीद भगत सिंह, राजगुरू, चंद्रशेखर आजाद, अशफाक उल्ला खान, सुभाष चंद्र बोस मौलाना अबुल कलाम आजाद ने अपनी कुर्बानियां दी और 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हो गया। ब्रिटिश हुकूमत से आजादी तो मिल गई, लेकिन आज भी विकासशील देशों में गिना जाने वाला भारत विकसित न हो सका। देश के विभिन्न प्रांतों में आपसी फूट के कारण आज भारत विकास के क्षेत्र में पिछड़ रहा है। बीते दिनों गुजरात से उत्तर भारतीयों को निकालने का जो मंजर सामने आया, उससे तो यही लगता है कि क्षेत्रवाद की राजनीति पनपने लगी है। स्वर्णिम भारत का सपने संजोये युवा भी आज खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। राजनीतिज्ञों की आपसी खींचतान के कारण उंच-नीच, जात-पात के अंकुर फूटने लगे हैं। आज देश में कभी सवर्णों और दलितों के बीच हिंसा, तो कभी गाय के नाम पर हिंसा से एकता की माला टूटने लगी है। संसद में देश के विकास को लेकर योजनाओं पर कम और धार्मिक क्रियाकलापों पर ज्यादा बहस होने लगी है। महिलाओं, बच्चियों से बलात्कार, यूपी में बेलगाम पुलिस का तांडव, मध्य प्रदेश में किसानों का आर्थिक शोषण, हरियाणा जाट आरक्षण आंदोलन इसके परिणति है। आज की राजनीति पीत पत्रकारिता की तरह हो गई है। जिसकी तस्वीर बदलने के लिए जरूरी है कि राजनीतिज्ञ लोग एक-दूसरे पर कींचड़ उछालने के बजाय अंग्रेजी हुकूमत से आजाद भारत को विकासशील नहीं विकसित दर्जे का बनाने के लिए काम किया जाए।
यामीन अंसारी-स्वतंत्र लेखक।

स्मृति


मंगलवार, 21 जून 2016

जेल की बंजर भूमि पर लहलहाएगी सोयाबीन की फसल




जेल प्रशासन ने ४० एकड़ भूमि को बनाया खेती योग्य
सौ एकड़ जमीन पर होगी धान की फसल
खेती से होगा आय में इजाफा

यासीन अंसारी
सितारगंज। संपूर्णानंद शिविर (खुली जेल) की भूमि विभिन्न विभागों को हस्तांतरित होने के बाद जेल की आय घट गई है। जिसे बढ़ाने के लिए जेल प्रशासन नए-नए तरीके इजाद करने में लगा है। जेल की बंजर जमीन में से करीब ४० एकड़ भूमि को खेती योग्य बनाया गया है। इसमें ३० एकड़ बंजर जमीन पर सोयाबीन की खेती होगी। इसके अलावा धान की फसल भी ९० एकड़ से बढ़ाकर सौ एकड़ में बोयी जा रही है। जिससे जेल की आय में भारी इजाफा होगा।
  वर्ष १९६० में एक हजार बंदियों की क्षमता वाली संपूर्णानंद शिविर जेल की स्थापना ५९६५ एकड़ जमीन पर की गई थी। जिसमें से ५३२६ एकड़ भूमि, सिडकुल, एसएसबी, बीएसएफ, वन विभाग व विस्थापितों को दी गई है। वर्तमान में जेल के पास ६३९ एकड़ जमीन है। जिसमें करीब दो सौ एकड़ भूमि पर खेती हो रही है। करीब ३० एकड़ में आवास बने हैं और ७० एकड़ जमीन नदी में समाहित है। इसके अलावा डेढ़ सौ एकड़ से अधिक जमीन बंजर पड़ी है। शेष भूमि में नदी, नाले व जंगल आदि है।
  संपूर्णानंद शिविर के वरिष्ठ जेल अधीक्षक टीडी जोशी ने बताया कि अभी तक करीब दो सौ एकड़ जमीन पर गन्ना, गेहूं और धान की पैदावार की जा रही थी। बताया कि जेल की आय बढ़ाने के लिए बंजर जमीन को खेती योग्य बनाया जा रहा है। अभी करीब ४० एकड़ जमीन कृषि योग्य बनाई गई है। जिसमें से ३० एकड़ बंजर भूमि पर सोयाबीन की खेती की जाएगी। जिसकी तैयारी हो चुकी है। इसके अलावा अभी तक ९० एकड़ जमीन में धान की खेती की जा रही थी।
  धान की खेती बढ़ाने के लिए दस एकड़ और बंजर जमीन को तैयारियों किया गया है। बताया कि खेती के माध्यम से जेल की आय बढ़ाई जाएगी। बताया कि सेंट्रल के २० कैदियों की कमान धान की रोपाई करने में लगाई गई है। बताया कि सेंट्रल जेल में २८५ कैदी हैं और शिविर में ५७ बंदी सजा काट रहे हैं। कैदी व बंदी कम होने से खेती कम हो रही है।

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जेल की ५९६५ एकड़ में बांटी गई भूमि

-नौ मार्च १९६१ को वन विभाग को २३५ एकड़ जमीन दी।
-नौ मार्च १९७७ को बंगालियों को १२११ एकड़ भूमि पर विस्थापित किया गया।
-तीन नवंबर १९७९ को ७५० एकड़ जमीन पर अल्मोड़ा व पिथौरागढ़ जिले के मैग्नेसाइट पीडि़त परिवारों को बसाया गया।
-२००३ में ९७ एकड़ भूमि केंद्रीय कारागार के लिए दी गई।
-तीन जून २००६ को २२२६.४५ एकड़ जमीन उद्योग विभाग को दी गई।
-इसी साल बंदरिया के पास ढाई एकड़ जमीन पावर हाउस बनाया गया।
-फरवरी २००७ में १८६.६७ एकड़ जमीन सिडकुल को दी गई।
-१७ मई २०१३ को सिडकुल फेज टू के लिए ४८७.३१ एकड़ भूमि सिडकुल को हस्तांतरित की गई।
-एक अगस्त २०१३ को ८० एकड़ भूमि एसएसबी को आवंटित हुई।
-तीन अक्टूबर २०१३ को ५० एकड़ भूमि बीएसएफ को हस्तांतरित की गई।
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नोट:-वर्तमान में संपूर्णानंद शिविर जेल के पास कुल ६४० एकड़ भूमि शेष रह गई है।
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सोमवार, 11 अगस्त 2014

क्या हमें नहीं है जीने का अधिकार ?




Picture of gurjar Khatta in Barakoli Renj Baigul Dam  Sitarganj
  बात है एक साल पहले कि, जब मै अपने दफ्तर से सितारगंज वन रेंज खबर की कवरेज के लिए गया था ! वन में हरे पेड़ो के कटान की खबर तो कवरेज की, पर वहां डेरे बनाकर रहने वाले गुर्जर परिवारो के रहन सहन को भी देखा।…और फिर क्या था, उनके जीवन को देख आम नागरिक के अधिकारो कि याद आ गयी! जब मैंने इन परिवारो से उनकी व्यथा जानी तो पता चला कि हैं तो आम नागरिक कि तरह, जीने के अधिकार क्या होते है, ये उन्हें पता भी न था! बस मालूम था, तो सिर्फ इतना कि हम भाई वोट डालते है और चुनते है अपना प्रतिनिधित्व करने वाले सशक्त नेता को! हाल ही में जब मुझे दुबारा इन परिवारो के बीच जाने का अवसर मिला तो मैंने जाना कि इतिहास खुद को दोहरा रहा है! हालत आज भी जस के तस है!

Gurjar Familly
   वन खत्तों में रहने वाले गुर्जर बीते एक दसक से अपने मताधिकार का प्रयोग कर रहे हैं ! हर बार उनके मन मे यही जिज्ञासा होती है कि सायद इस बार शासनतंत्र उन पर मेहरबानी कर दे, लेकिन कही इसबार भी गुर्जर परिवार वोटबैंक बनकर न रह जाय! सितारगंज के बरकोली वन रेंज के कम्पार्ट नम्बर सात स्थित खत्ते में १८ डेरे, कम्पार्ट नंबर पांच में स्थित खत्ते में ७ डेरे है! जिनमे तकरीबन ८० मतदाता है ! ये मतदाता सितारगंज ग्रामसभा फिरोजपुर वनकुईया के जनप्रतिनिधियो को अपना वोट डालते है! इसी तरह रनसाली, जौलसाल, किशनपुर वन रेंज में भी  सैकड़ो गुर्जर मतदाता रहते है!
  इन परिवारो से जब बात की गई तो अधिकारो को लेकर दिल में छिपा दर्द बयां कर उठे! उनका कहना था कि पशुपालन ही एकमात्र रोजगार का जरिया है! शासन की ओर से राजस्वग्रामो  के लोगो को सरकार की योजनाओ का लाभ दिया जाता है. लेकिन उनके लिए कभी किसी ने नहीं सोचा! न ही उनके बच्चो को ही बेहतर सुविधा दी जाती है! सरकार ने स्कूल खोले भी है तो सिर्फ प्रा  स्कूल! यहाँ बच्चे सिर्फ ५वी तक की शिक्षा ग्रहण करते है! लेकिन उच्च शिक्षा के लिए उनके बच्चो को कोई लाभ नहीं मिलता ! बकौल, गुर्जर समुदाय' काश! हमारे खत्तों को भी राजस्व ग्राम में शामिल किया होता तो आज हम योजनाओ का लाभ ले पाते!  उन्होंने सरकार से आम नागरिक की तरह उन्हें भी योजनाओ का लाभ दिए जाने की माँग की है!

बुधवार, 7 मई 2014

सितारगंज विधानसभा मे लोकतंत्र के महापर्व मे
भागीदारी को लेकर जनता मे दिखा उत्साह
73 प्रतीशत वोटरो ने की वोटिंग
विधानसभा के 100547 वोटरो में से 72999 वोटरो ने की वोटिंग
इन वोटरो मे 32914 महिला और 40085 पुरूष वोटरो ने डाले वोट..... 

सोमवार, 31 मार्च 2014

देश में लोकतंत्र पर मंडराया संकट !
कुर्सी की दौड़ में नेता लगे हैं विकट!!
कैसे हो जीत और कब बने मंत्री-प्रधानमंत्री!
इन्हीं गुढ़ा-भाग में नेताओं की है चलती!
जनमुद्दों और देश के विकास से नहीं कोई सरोकार!
बस, लालसा है तो सिर्फ सिर पर हाक़िम का पहनना ताज!
देश में लोकतंत्र पर मंडराया संकट !
कुर्सी की दौड़ में नेता लगे हैं विकट!!
चुनावी रड़ में राष्ट्रवाद, धर्मनिरपेकछ्ता, एकता की होती है बात!
जब समय आता है नेतृत्व का तो भूल जाते है कही गयी बात!
यही देश का दुर्भाग्य है न बदली सूरत न बदले हालात!
हर हाथ रोजगार के बजाय देश में बढ़े बेरोजग़ार!
देश में लोकतंत्र पर मंडराया संकट !
कुर्सी की दौड़ में नेता लगे हैं विकट!!
जागो मतदाता जागो, अब समय है तुम्हारा!
सबक सिखाओ ऐसे नेताओ को जिसने एकता का किया बंटवारा!
कौन है देश का सच्चा भक्त और किसमे है विकास की छमता!
यही सोचकर दीजिये मत, ताकि भारत कहलाए विश्व में प्यारा!
देश में लोकतंत्र पर मंडराया संकट.......

शुक्रवार, 27 दिसंबर 2013

क्या हमें नहीं है जीने का अधिकार ?
बात है एक साल पहले कि, जब मै अपने दफ्तर से सितारगंज वन रेंज खबर की कवरेज के लिए गया था ! वन में हरे पेड़ो के कटान की खबर तो कवरेज की, पर वहां डेरे बनाकर रहने वाले गुर्जर परिवारो के रहन सहन को भी देखा।…और फिर क्या था, उनके जीवन को देख आम नागरिक के अधिकारो कि याद आ गयी! जब मैंने इन परिवारो से उनकी व्यथा जानी तो पता चला कि हैं तो आम नागरिक कि तरह, जीने के अधिकार क्या होते है, ये उन्हें पता भी न था! बस मालूम था, तो सिर्फ इतना कि हम भाई वोट डालते है और चुनते है अपना प्रतिनिधित्व करने वाले सशक्त नेता को! हाल ही में जब मुझे दुबारा इन परिवारो के बीच जाने का अवसर मिला तो मैंने जाना कि इतिहास खुद को दोहरा रहा है! हालत आज भी जस के तस है!
   वन खत्तों में रहने वाले गुर्जर बीते एक दसक से अपने मताधिकार का प्रयोग कर रहे हैं ! हर बार उनके मन मे यही जिज्ञासा होती है कि सायद इस बार शासनतंत्र उन पर मेहरबानी कर दे, लेकिन कही इसबार भी गुर्जर परिवार वोटबैंक बनकर न रह जाय! सितारगंज के बरकोली वन रेंज के कम्पार्ट नम्बर सात स्थित खत्ते में १८ डेरे, कम्पार्ट नंबर पांच में स्थित खत्ते में ७ डेरे है! जिनमे तकरीबन ८० मतदाता है ! ये मतदाता सितारगंज ग्रामसभा फिरोजपुर वनकुईया के जनप्रतिनिधियो को अपना वोट डालते है! इसी तरह रनसाली, जौलसाल, किशनपुर वन रेंज में भी  सैकड़ो गुर्जर मतदाता रहते है!
इन परिवारो से जब बात की गई तो अधिकारो को लेकर दिल में छिपा दर्द बयां कर उठे! उनका कहना था कि पशुपालन ही एकमात्र रोजगार का जरिया है! शासन की ओर से राजस्वग्रामो  के लोगो को सरकार की योजनाओ का लाभ दिया जाता है. लेकिन उनके लिए कभी किसी ने नहीं सोचा! न ही उनके बच्चो को ही बेहतर सुविधा दी जाती है! सरकार ने स्कूल खोले भी है तो सिर्फ प्रा  स्कूल! यहाँ बच्चे सिर्फ ५वी तक की शिक्षा ग्रहण करते है! लेकिन उच्च शिक्षा के लिए उनके बच्चो को कोई लाभ नहीं मिलता ! बकौल, गुर्जर समुदाय' काश! हमारे खत्तों को भी राजस्व ग्राम में शामिल किया होता तो आज हम योजनाओ का लाभ ले पाते!  उन्होंने सरकार से आम नागरिक की तरह उन्हें भी योजनाओ का लाभ दिए जाने की माँग की है!